शिवहर में तीर के निशाने पर लालटेन और ओवैसी का तड़का
Lok Sabha Election 2024
ओवैसी के सियासी पैंतरे से किसको होगा फायदा ?
अर्थप्रकाश / मुकेश कुमार सिंह
पटना / बिहार । Lok Sabha Election 2024: बिहार के जिन सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी के द्वारा प्रत्याशी उतारने के कयास लगाए जा रहे थे, वहाँ से ओवैसी कन्नी काट कर निकल गए। लेकिन एक बार फिर से ओवैसी बिहार की सियासत में हलचल पैदा कर रहे हैं । 7 मई को तीसरे चरण का मतदान होने वाला है। शेष बचे चार चरण के चुनाव के लिए, ओवैसी ने अपनी दावेदारी के पत्ते खोल दिये हैं। आखिर ओवैसी अब बिहार में किसका खेल खराब करेंगे और किस-किस का बेड़ा पार लगाएँगे, इस पर सियासी बहस छिड़ चुकी है। लोकसभा चुनाव के लगभग बीच में, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के अचानक से बिहार में आठ से दस लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के ऐलान से बिहार की सियासत गरमा गई है। बिहार में पहले दो चरणों के चुनाव में नौ संसदीय सीटों पर मतदान हो चुके हैं। 7 मई को तीसरे चरण का मतदाना होना है। दूसरे चरण के चुनाव में सीमांचल की उन सीटों पर मतदाना हो चुके हैं, जहाँ बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी है। इस समीकरण के बाबजूद एआईएमआईएम ने सिर्फ किशनगंज से ही अपना उम्मीदवार उतारा है। किशनगंज सीट के लिए असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव प्रचार भी किया था। हालाँकि अब पार्टी ने अपनी रणनीति पूरी तरह से बदल ली है और कुछ चौंकाने वाले फैसले लेने जा रही है।
चार चरणों के बचे चुनाव में 8 से 10 सीटों पर ओवैसी के होंगे प्रत्याशी
एआईएमआईएम ने घोषणा की है कि वह बिहार में आठ से 10 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारेगी। कयास लगाया जा रहा है कि इसमें किशनगंज और शिवहर के अलावे गोपालगंज, पाटलिपुत्र, महाराजगंज, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, जहानाबाद, काराकाट, वाल्मीकिनगर और मोतिहारी की सीट शामिल हो सकती है। पार्टी ने शिवहर में पूर्व सांसद सीताराम सिंह के बेटे राणा रंजीत सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। शेष सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम की घोषणा का अभी।इंतजार है। लेकिन शिवहर से उम्मीदवार की घोषणा के साथ ही, ओवैसी सियासतदारों के निशाने पर आ गए हैं। उन पर आरोप लगाया जा रहा है कि वे समझ-बूझ कर एनडीए को कमजोर करने की रणनीति के तहत, शिवहर सहित इन अन्य सीटों पर चुनाव में प्रत्याशी उतारने जा रहे हैं। जिस शिवहर सीट से राणा रंजीत सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है, वहाँ सीधा मुकाबला जदयू की लवली आनंद और राजद की रितु जायसवाल के बीच है। लवली आनंद राजपूत जाति से आती हैं। ऐसे में यहाँ राजपूत जाति से आने वाले राणा रंजीत सिंह को अपना प्रत्याशी बना कर, ओवैसी तमाम विरोधियों के निशाने पर आ गये हैं। कहा जा रहा है कि उन्होंने जान बूझ कर ऐसा किया है ताकि राजपूत वोटों में बंटवारा हो जाए। अगर ऐसा हुआ, तो यह लवली आनंद के लिए बड़ा झटका हो सकता है। यहाँ मुस्लिम वोटरों की संख्या 16 प्रतिशत है। यह पूरी तरह से साफ है कि मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के आधार पर खड़ी एआईएमआईएम के, अचानक से बिहार में कई सीटों पर उम्मीदवार उतारने के फैसले ने सभी को सकते में डाल दिया है। दीगर बात है कि सीमांचल के जिन इलाकों में चुनाव संपन्न हुए हैं, उनमें कटिहार और पूर्णिया दो ऐसी सीटें रही हैं, जहाँ मुस्लिम मतदाताओं की तायदाद 40 फीसदी से ज्यादा मानी जाती है। इसी तरह अररिया में करीब 42 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों के बावजूद, एआईएमआईएम ने यहाँ से प्रत्याशी नहीं दिया। कटिहार में तो एआईएमआईएम ने आदिल हसन को प्रत्याशी तक घोषित कर दिया था लेकिन नामांकन से चंद घंटों पूर्व पार्टी का फैसला आया कि यहाँ से पार्टी चुनाव नहीं लड़ेगी। इसी तरह अररिया में पूर्व सांसद तसलीमुद्दीन के बड़े पुत्र सरफराज आलम का टिकट काट कर, लालू प्रसाद यादव ने उनके छोटे भाई शाहनवाज को उम्मीदवार बना दिया। इससे सरफराज नाराज हुए और उन्हें उम्मीद थी कि एआईएमआईएम से उन्हें अररिया से उम्मीदवार बनाया जाएगा। लेकिन ओवैसी की पार्टी ने अररिया से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला ले लिया।
शिवहर में लवली आनंद को जिताने के लिए ओवैसी का मास्टर प्लान
अब हम ओवैसी के अचानक से बिहार चुनाव में, दखल के पीछे के असली मकसद को बताना चाहते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि ओवैसी का शिवहर से राजपूत प्रत्याशी देना और कई अन्य सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान करना, ओवैसी की बड़ी सियासी रणनीति का हिस्सा है। बिहार के राजनीतिक विश्लेषक शिवहर लोकसभा से राणा रंजीत सिंह को उम्मीदवार बनाने से लवली आनंद को नुकसान होने की बात कर रहे हैं। उनकी समझ से, यह राजद के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है। लेकिन असली राजनीति कुछ और है। हमारे पास आई जानकारी के मुताबिक, राणा रंजीत सिंह को ओवैसी ने हत्यारोपी सजायाफ्ता पूर्व सांसद आनंद मोहन के मनुहार से चुनावी समर में उतारा है। शिवहर की जदयू प्रत्याशी पूर्व सांसद लवली आनंद, पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी हैं। राजनीतिक चौसर बिछाने में माहिर आनंद मोहन, यह जान रहे हैं कि कुछ राजपूत वोट उनके पाले से बाहर हैं और मुस्लिम वोट भी उनकी पत्नी लवली आनंद को नहीं मिलने जा रहे हैं। ऐसे में पूर्व सांसद आनंद मोहन यह सोच रहे हैं कि जो वोट राजद के पाले में जा सकते हैं, वे तमाम वोट किसी भी सूरत में राणा रंजीत सिंह को मिल जाये। इससे लवली आनंद की जीत पक्की हो जाएगी। शिवहर की इस राजनीतिक बिसात को, राजनीतिक समीक्षकों ने कतई समझने का प्रयास नहीं किया है। ओवैसी का यह राजपूत उम्मीदवार, लवली आनद की जीत की सीढ़ी साबित होगी। 4 जून को जब चुनाव परिणाम आएगा, तो ओवैसी और आनंद मोहन के गठजोड़ पर से पर्दा पूरी तरह से उठ जाएगा। अब यह देखना भी बेहद महत्वपूर्ण होगा कि शेष जिन सीटों से ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने, चुनाव लड़ने का फैसला लिया है वहाँ से किस-किस को उम्मीदवार बनाया जाता है। वे उम्मीदवार किसकी जीत और किसकी हार का ठेका ले कर चुनाव लड़ेंगे, इस राज का भी खुलासा मतगणना के दिन हो जाएगा। कुल मिला कर ओवैसी शेष बचे चरण में, सिर्फ जीत और हार सुनिश्चित करने के लिए अपनी पार्टी के प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतार रहे हैं। बिना किसी लाग लपेट के हम यह दावे के साथ कह रहे हैं कि ओवैसी की यह रणनीति, कई प्रमुख उम्मीदवारों के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।